प्रबंधक
एडवोकेट फतेरम शर्मा
प्रबंधक की कलम से शब्द
शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है, व्यक्ति अपने जन्म से मृत्यु तक जो कुछ सीखता है तथा जो कुछ अनुभव करता है वह सब कुछ शिक्षा के व्यापक अर्थ के अंतर्गत आता है। छात्र व छात्राओं के सीखने व अनुभव करने का परिणाम यह होता है की वह धीरे-धीरे विभिन्न, प्रकार से अपने भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक वातावरण से अपना सम्बन्ध स्थापित करता है।
‘नाप्ति विघासमं चक्षु’ अथार्त विघा के समान कोई दूसरा नेत्र नहीं है। अतः हम कह सकते है शिक्षा उस विकास का नाम है जो बचपन से लेकर जीवन के अन्तिम क्षण तक चलती रहती है। इसी विकास के कारण व्यक्ति अपनी परिस्थितियों पर सुलभता से विजय प्राप्त करता करता है, अपने कर्तव्य का पालन करता है इस विकास के बिना उसका जीवन सफल नहीं होता है।
आज संसार में विकासशील तथा विकसित देशों की तुलना करने से यह पता चलता है कि विकसित देशों का विकास तथा समृद्धि का एक ही रास्ता है “विधा” विकसित देशों लगभग शत प्रतिशत जनसंख्या साक्षर है लेकिन भारत देश उन्नति करने की राह पर तत्पर है।
आर.एस.योगा संस्थान का उद्देश्य, शिक्षित, (सकारात्मक) सोच, चरित्र निर्माण, लोक व्यवहार, वैज्ञानिक सोच भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत, एक स्वास्थ्य व शिक्षित समाज का निर्माण करना है।
व्यवहार सम्बन्धों को प्रभावित करता है ।मनोभावना व्यवहार को प्रभावित करता है। ज्ञान या अज्ञान मनोभावों को प्रभावित करते है। गुरु कृपा से ज्ञान प्रफुल्लित होता है अपने अन्दर ज्ञान को कायम रखने की चिंता मत करो, जब ज्ञान विवेक बनकर तुममें समा जायेगा वह तुम्हें कभी नहीं छोड़ेगा। विवेक ह्र्दय में समा जाता है। उदार और परिश्रमी बनों सफलताएँ आपसे दूर नहीं हैं , जीवन तो सभी जीते हैं, किन्तु जीवन को जो आदर्श के साथ जीते हैं वही सफल रहते हैं ।
Lalit Arya
Yog Aacharya
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Praveen Bhardwaj
HOD Yoga Department
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Relationship Manager
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